बहाना

लड़ने को इक दिन मैं घर से चला
लड़ना ही होगा, यह सब ने कहां

सदियों से खेल, यह चल है रहा
अंजाम है क्या, यह भी सब को पता

सूनी है राहें और काला है कोहरा
दिखता नहीं है कि आगे क्या होगा

क्या लड़ते ही लड़ते गुज़र जाना है
ज़िन्दगी से कभी क्या जीत पाना है

कोई चिराग़ जलायो मेरे आसपास
अंधेरे से जकड़ी, खुले मेरी सांस

सवालों के घेरे में मैं हूं खड़ा
लाज़वाब हूं, परेशान हूं बड़ा

कोई तो कुछ बताओ मुझे
करना है क्या समझाओ मुझे

क्यों ना एक दूसरे का सहारा बने
इस गहरी नदी में किनारा बने

वक्त कटता किसी बहाने से है
आओ आज किसी का बहाना बने

ज़िन्दगी की यही अब कोशिश रहे
की ऐसे पकड़े किसी का हाथ, की कोई हमारा बने।

06.01.2015

वक़्त

वक़्त का दस्तुर भी अज़ब निराला है
कभी गिराया और कभी इसी ने संभाला है

यूं तो कायर है, पल पल करके सामने आता है
अतीत की चुभन और भविष्य की फ़िकर, इन दोनों में ही भरमाता है

कभी कमजोर तो कभी बलवान जान पड़ता है
जहां कदर नहीं, वहां तो भरपूर है मगर, कहीं चंद घड़ियां देने में भी अखरता है

मैं इसके रूबरू होना चाहता हूं
मैं इसे बेपर्दा करना चाहता हूं

पर जब भी मुशक्कत करता हूं, कहीं दूर पहुंच जाता हूं
असल को छोड़कर, बेमतलबी गालियों में जरूर पहुंच जाता हूं

पर ज़िद है मेरी, की इक बार तो सामना हो
जिस वक़्त ने चलाया तय ज़िन्दगी, उस वक़्त का कुछ तो जानना हो
इक बार तो सामना हो।

24.02.2015