वक़्त

वक़्त का दस्तुर भी अज़ब निराला है
कभी गिराया और कभी इसी ने संभाला है

यूं तो कायर है, पल पल करके सामने आता है
अतीत की चुभन और भविष्य की फ़िकर, इन दोनों में ही भरमाता है

कभी कमजोर तो कभी बलवान जान पड़ता है
जहां कदर नहीं, वहां तो भरपूर है मगर, कहीं चंद घड़ियां देने में भी अखरता है

मैं इसके रूबरू होना चाहता हूं
मैं इसे बेपर्दा करना चाहता हूं

पर जब भी मुशक्कत करता हूं, कहीं दूर पहुंच जाता हूं
असल को छोड़कर, बेमतलबी गालियों में जरूर पहुंच जाता हूं

पर ज़िद है मेरी, की इक बार तो सामना हो
जिस वक़्त ने चलाया तय ज़िन्दगी, उस वक़्त का कुछ तो जानना हो
इक बार तो सामना हो।

24.02.2015

मन की दशा

चुभते है कांटे पर दवा नहीं है
गहरे है ज़ख्म पर कोई गवाह नहीं है

खोलता है दिल मुझे अपनो की फिक़र है
कांटो से छलनी छलनी हुआ यह ज़िगर है

आहो मैं कटते है मेरे दिन और रात
चोट खाए इस दिल में है गहरे जज़बात

शब्दों के दीलासो में अब असर नहीं है
क्या कर जाए कोई ख़बर नहीं है।

08.08.2013