कितना सहे

किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें

क्या कटु बोलना प्रेमी का अधिकार है
फिर क्यूं उसके शब्द मुझे लगे तिरस्कार है
मोहब्बत की इस कड़ी को हम क्यों ना समझ सके

किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें

क्या कटु सुनने में छुपा हमारा भला है
फिर क्यों उन शब्दों से कलेजा मेरा जला है
जलने का डर मुझे कर रहा तुम से परे

किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें

फूलों के संग भी लगे हज़ारों कांटे है
क्या यही सोचकर तुमने अपने शब्द छांटे है
मेरे मन उन नोकीले कांटो से बहुत है डरे

किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें

कैसे समझाए मन को की कटु बोलना तुम्हारी आदत है
उन शब्दों में भी छुपी मेरे लिए तुम्हारी इबादत है
मन की इस उलझन को कैसे दूर करें

किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें

30.03.2009

मिलते रहो

तुम से बात कर के दिल को एक तसल्ली सी हो जाती है,
की इस पूरी दुनिया में, मेरा भी कोई दोस्त है।

कोई है जिससे जब चाहो तब बात कर लो,
वरना दुनिया में कोई किसी को कहां सुनता है।

आजकल तुमने भी मेरा फोन उठाना बंद कर रखा है,
ख़ुदा करे की किसी परेशानी में ना हो तुम।

तुम ना आयो वोह तो चल जायेगा,
पर तुम्हे कुछ हो जाए, यह हमें ग्वारा नहीं।

ना जाने कौन सा काम करने लगे हो तुम,
जिसमें सांस तक लेने की फुरसत नहीं।

पैसा जरूरी है जिंदगी के चिरागों को रोशन रखने के लिए, पर उसी में लगे रहो, तुम्हे इतनी भी गुरबत नहीं।

मेरा तो चंद सालो का ही खेल बाकी है,
उसके बाद तो रूकसत हो जाना है।

कुछ यादें बटोरना चाहता हूं अपने सफर के लिए,
मुझे मरने के बाद भी मुस्कुराना है।

इसी लिए दरख़्वास्त है मेरी की मेरे दोस्त,
तुम मुझे बार बार आकर मिलते रहो।

मुझे किसी दिन तुम फोन करो,
की तुम मेरे घर के बाहर हो, ऐसा कहो।

मुझे बार बार आकर मिलते रहो।।