सदियों से हम किसी ना किसी को मुखिया बनाते रहे
अपनी समझ को इस्तेमाल करने में हिचकिचाते रहे
मुखिया की ही समझ श्रेष्ठ है, इसका क्या प्रमाण है
कभी ना कभी तो वोह भी गलती करेगा, आखिर वोह भी तो इंसान है
मुखिया अपनी ज़िमेदारी भूल चुका है, अब उसकी सरदारी हो गई
और हर मुखिया इससे ग्रस्त हो गया, इतनी भयंकर यह बीमारी हो गई
अब लोगों का पोषण नहीं, बस शोषण होता है
ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, दीलासो भरा उनका भाषण होता है
समाज को इस महामारी से कैसे मिलेगी निजात
मेरी समझ से तो अब लोगो को ज़िमेदारी लेनी होगी अपने हाथ।