किससे कहें, किससे ना कहें
क्या कटु बोलना प्रेमी का अधिकार है
फिर क्यूं उसके शब्द मुझे लगे तिरस्कार है
मोहब्बत की इस कड़ी को हम क्यों ना समझ सके
किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें
क्या कटु सुनने में छुपा हमारा भला है
फिर क्यों उन शब्दों से कलेजा मेरा जला है
जलने का डर मुझे कर रहा तुम से परे
किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें
फूलों के संग भी लगे हज़ारों कांटे है
क्या यही सोचकर तुमने अपने शब्द छांटे है
मेरे मन उन नोकीले कांटो से बहुत है डरे
किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें
कैसे समझाए मन को की कटु बोलना तुम्हारी आदत है
उन शब्दों में भी छुपी मेरे लिए तुम्हारी इबादत है
मन की इस उलझन को कैसे दूर करें
किसकी सहे, किसकी ना सहे
किससे कहें, किससे ना कहें
30.03.2009