मजबूरियां

मुश्किल हालातों ने मजबूरियों को रहने की जगह क्या दी जिंदगी में,
की अब वोह जाने का नाम ही नहीं ले रही है।

हर बार कोई न कोई बहाना बता के,
कुछ देर ओर की मोहलत मांग कर ठहर जाती है।

इस दफ़ा तो कोई बहाना सुनने वाला नहीं हूं मैं,
हाथ पकड़ कर निकाल बाहर करने वाला हूं मैं।

पर मेरी ताक़त-ए-परवाज़ कुछ कम है इन दिनों,
बस इसी मजबूरी के चलते कुछ कह नहीं पाता हूं मैं।

मजबूरियों ने चारो तरफ से ऐसे घेरा है मुझे,
के बेबस और लाचार सा महसूस करता हूं खुद को।

ए मेरे मौला, अब तू ही इमदाद कर मेरी,
मुझे मेरी सब मजबूरियों से निजात दिला दे।

इंसान बना के भेजा था ना तूने मुझे मेरे मौला,
मेरे अंदर बैठा वो इंसान बस जगा दे।

जगा यकीन अपने रहम-ओ-करम का मेरा अंदर मौला,
मेरे अंदाज-ए-नज़र मैं असर बड़ा दे।

मजबूरियों को बदल दे कोशिशों में मेरी,
मुझे मेरी मंजिल-ए-आराम तक पहुंचा दे।।

रे ओ श्यामा

रे ओ श्यामा, रेे ओ प्यारे
ना जाने कब मिल होगा
पुकारते है हम चारों पहर
ना जाने कब तेरा दिल होगा

शिकायत मैं नहीं करता
बहाने तुम बनाते हो
कभी किस्मत, कभी बन्धन
कर्मो का बताते हो

अगर तुम ज़िद के पक्के हो
तो कम हम भी है कहां
धरा पर मिल ना पाए गर
तो मिलने आएंगे तू जहां