पत्थर दिल हो जा ए मुसाफ़िर
जीना यहीं है
जग ने कहीं है
शायद सही है
जीना यहीं है
जग ने कहीं है
शायद सही है
आंखों के आंसू अब गिरते नहीं है
ना कोई है अपना
ना कोई पराया
ठोकरों ने जग की, है यही समझाया
सूने पलो के कांटे अब चुभते नहीं है
आंखों के आंसू अब गिरते नहीं है
ज़ख्मों का क्या है विशाल
वोह तो भर ही जाएंगे
थोड़ा और मजबूत, तुम्हें कर ही जाएंगे
ज़ख्म पुराने, अब दुखते नहीं है
आंखों के आंसू अब गिरते नहीं है
उम्र का तजुर्बा यही है विशाल
मुरझाने के बाद, फूल खिलते नहीं है
आंखों के आंसू अब गिरते नहीं है