जिस ज़िन्दगी में मरने की चाह हो
उस ज़िन्दगी को मैं कैसे ज़िन्दगी कहूं
उस ज़िन्दगी को मैं कैसे ज़िन्दगी कहूं
और जिस घर में होता बेवजह कलह हो
उस घर को मैं कैसे घर कहूं
दोनों ही बिखरने की कगार पर है
मौत आज या कल में दोनों को खाएगी
यह असम्यक बर्बादी बड़ी खतरनाक है
क्या कोई ताक़त इसे रोक पाएगी
कोई रोक भी पाएगा तो कैसे
यह बीस साल पहले शुरू हुआ मंज़र है
विषेले शब्द और वोह कड़वी यादें
आज हाथ में बना यह खंजर है
मौत पहले घर की होगी या ज़िन्दगी की
देखने वालों को बस इसी का इंतजार है
मेरी तरफ़ से तो चाहे कुछ भी हो
दोनों तरफ़ से मेरी ही हार है।