ढल गई मेरी जवानी, यह कैसा वक्त आया
इस लम्हे का ही है कसूर, जिसने कहर ढाया
बाल पना कब छूटा, कब बिसरी थी जवानी
किनारा खुद को समझता था मैं, पर था बेहता पानी
झर झर होते हम हर पल, मौत को गले लगाते
ख़बर नहीं थी असल जीवन की, झूठा रहे मुस्कुराते
करते रहे हम झूठ इकठ्ठा, जगी कितनी रातें
और-और कैसे करे इकठ्ठा, यही सवाल सताते
इक दिन भी ऐसा ना गुजरा, जिस दिन हम ना भागे
लगता था कहीं पहुंचना है, निकल ना जाए कोई आगे
ठोकर लगी और गिर पड़े हम, वक्त ने तब यह पूछा
कुछ देर में ही बस जाना होगा, कोई बाकी इच्छा
मन ने कहा अभी सुख ना पाया, सुख पाना है बाकी
अभी तलक हम बना रहे थे, मन में थी जो झांकी
जब से जन्मा अब तलक तक, नहीं है सुख मैंने पाया
जबकि करता रहा दिन रात वहीं मै, जग ने जो बतलाया
सपना मेरा पूरा ना हुआ है, अभी ना मुझे लेजायो
जितना भी अभी वक्त बचा है, क्या करना समझाओ
वक्त ने कहा तुम्हें मोका मिला था, की तुम कौन हो जानो
असल सुख मन की शांति है, इस सच्चाई को पहचानो
जब सब सच था सामने मेरे, क्यों ना समझ मैं पाया
मिट्टी किया जीवन यह सारा, मुझे हीरा था पकड़ाया
समझ लिया आब क्या करना है, इच्छा कोई ना बाकी
हर क्षण अब हम खोज करेंगे, शांति स्वरूप पिया की
27.09.2013