लड़ना ही होगा, यह सब ने कहां
सदियों से खेल, यह चल है रहा
अंजाम है क्या, यह भी सब को पता
सूनी है राहें और काला है कोहरा
दिखता नहीं है कि आगे क्या होगा
क्या लड़ते ही लड़ते गुज़र जाना है
ज़िन्दगी से कभी क्या जीत पाना है
कोई चिराग़ जलायो मेरे आसपास
अंधेरे से जकड़ी, खुले मेरी सांस
सवालों के घेरे में मैं हूं खड़ा
लाज़वाब हूं, परेशान हूं बड़ा
कोई तो कुछ बताओ मुझे
करना है क्या समझाओ मुझे
क्यों ना एक दूसरे का सहारा बने
इस गहरी नदी में किनारा बने
वक्त कटता किसी बहाने से है
आओ आज किसी का बहाना बने
ज़िन्दगी की यही अब कोशिश रहे
की ऐसे पकड़े किसी का हाथ, की कोई हमारा बने।
06.01.2015