मुक्ति


गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम
मान लो कथन यह सच्चा
तो मुक्त हो तुम

मन ही है,
जो तुम्हे भटकाए
असल को छुड़वा,
अपने पीछे लगाए
जब छोड़ो पीछा इसका,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम

पर मन से परे हम,
कैसे है जाए
हर जगह इसने,
अपने सिपाही बिठाए
जो पकड़ो सांस का रस्ता,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम

देखते देखते यह,
सिमटता है जाए
मिटने से पहले जब,
मन आंखें टिमटिमाए
ध्यान रहे तब पक्का,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा,
तो मुक्त हो तुम

गहन नींद में जब,
यह खो जाए
गर तब भी तुम,
अगर ना डगमगाए
जैसे ही मैं ने मैं को देखा,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा,
तो मुक्त हो तुम

असल को तुम,
जब पहचानोगे
तुम क्या हो,
तुम यह जानोगे
मिट जाएगा कर्मों का लेखा,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा, तो मुक्त हो तुम

मिलते रहो

तुम से बात कर के दिल को एक तसल्ली सी हो जाती है,
की इस पूरी दुनिया में, मेरा भी कोई दोस्त है।

कोई है जिससे जब चाहो तब बात कर लो,
वरना दुनिया में कोई किसी को कहां सुनता है।

आजकल तुमने भी मेरा फोन उठाना बंद कर रखा है,
ख़ुदा करे की किसी परेशानी में ना हो तुम।

तुम ना आयो वोह तो चल जायेगा,
पर तुम्हे कुछ हो जाए, यह हमें ग्वारा नहीं।

ना जाने कौन सा काम करने लगे हो तुम,
जिसमें सांस तक लेने की फुरसत नहीं।

पैसा जरूरी है जिंदगी के चिरागों को रोशन रखने के लिए, पर उसी में लगे रहो, तुम्हे इतनी भी गुरबत नहीं।

मेरा तो चंद सालो का ही खेल बाकी है,
उसके बाद तो रूकसत हो जाना है।

कुछ यादें बटोरना चाहता हूं अपने सफर के लिए,
मुझे मरने के बाद भी मुस्कुराना है।

इसी लिए दरख़्वास्त है मेरी की मेरे दोस्त,
तुम मुझे बार बार आकर मिलते रहो।

मुझे किसी दिन तुम फोन करो,
की तुम मेरे घर के बाहर हो, ऐसा कहो।

मुझे बार बार आकर मिलते रहो।।