मझधार में फंसा हूं मैं, मैं जानता हूं
अपनी गलतियों की वजह से यहां हूं मैं, मैं जानता हूं
अपनी गलतियों की वजह से यहां हूं मैं, मैं जानता हूं
जमाने भर से लड़ा हूं मैं, मैं जानता हूं
कोरे अहम से भरा हूं मैं, मैं जानता हूं
औरों के गम में मुस्कुराया हूं मैं, मैं जानता हूं
ज़ुल्म करने में ना हिचकिचाया हूं में, मैं जानता हूं
ईर्षा में पागल होकर छटपटाया हूं मैं, मैं जानता हूं
खुशी किसी कि भी ना देख पाया हूं मैं, मैं जानता हूं
काश के कोई समझा देता मुझे
जो असल बात है वोह बता देता मुझे
तो आज इतना पछतावा ना होता
रुंधे रुंधे गले से मैं इतना ना रोता
अब कोई मेरी कब्र पर फूल चढ़ाने नहीं आता
मेरे जिंदा ना होने का मातम नहीं मनाता
अब तो दोजक की आग जलाए मुझे
कब से जागा हूं, सुलाए मुझे
सब झूठ था, अब मानता हूं मैं
अब असल मैं कुछ जानता हूं मैं।