क्यों बेड़ियां मेरे पावों में है

क्यों बेड़ियां मेरे पावों में है
क्यों सिसकियां इन हवाओं में है

क्यों होंसला कमजोर है
क्यों पकड़ा एक ही छोर है

क्यों उड़ने से मैं डर रहा
क्यों ना कोशिश मैं कर रहा

क्या मन में चल रहा कुछ और है
क्या इसीलए इतना शोर है

क्या मन में मेरे चोर है
क्या इसने ही किया कमजोर है

कैसे लडू ख़ुद ही से मैं
जब मन ही मेरा चोर है|

कुछ आंसू बहा कर

कुछ आंसू बहा कर, तुम सचे बन गए
अब रो लिए है हम, यह कह कर तन गए

पर तुम्हे अपनी गलती का तो एहसास नहीं
कहां बेच आए हो, जो इतनी सी शर्म भी तुम्हारे पास नहीं

और फिर कहते हो की सब नोर्मल करदो
अब कभी ना सुनाना इस भूल का किस्सा, इसे दफ़न करदो

पर तुम्हे ना कोई एहसास है, और ना ही कोई बदलाव है
कल भी यही करोगे, बस कब? यही सवाल है

तुम कितने स्वार्थ से भर गए हो, की तुम्हे अपनो का दुख दिखता नहीं
यह तो खून के रिश्तों की पकड़ है, वरना इस तूफ़ान में कोई टिकता नहीं

ना करो मिट्टी वोह साल, वोह दिन जो सिंचन में लगाएं है
मत छोड़ो इस कश्ती को, किनारे से बहुत दूर हम आएं है

कहना हमारा फ़र्ज़ है, पर करना तुम्हारी चाह है
फूल बिछा रहे थे हम क़दमों में, क्यूंकि कांटो भरी यह राह है

समझ करो ऐ प्यारे, अपनी भूल सुधारो
अपने नहीं मिलेंगे कहीं, चाहे लोग इकठ्ठे करलो हज़ारों।