यूं बूत बने बैठे ना रहो

आज देश लूटा है, कल घर लूटेगा तुम्हारा
जागो, उठो, सामना करो
यूं बूत बने बैठे ना रहो

चंद लोगों के ही हाथ में कमान है
उनके राज़ में हर कोई परेशान है
भविष्य की अपनी कमान, अपने हाथ में तो करो

जागो, उठो, सामना करो
यूं बूत बने बैठे ना रहो

अमीर की अमीरी और गरीब की गरीबी, दोनों का ही विस्तार है
और संसद में बैठा नेता इस सब के लिए जिम्मेदार है,
अपने आने वाले कल की फिक्र तो करो

जागो, उठो, सामना करो
यूं बूत बने बैठे ना रहो

आयो उतरे सड़कों पर, और मांगे हक हकीक़त में
एक और भी सांस ना लेना, दुश्वार हुई इस दिक्कत में
बदलाव का अब तुम साथियों, इंतजार ना करो

जागो, उठो, सामना करो
यूं बूत बने बैठे ना रहो

जब रक्षक ही भक्षक बन जाए

जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तब कौन बचाएं

सदियों से हम किसी ना किसी को मुखिया बनाते रहे
अपनी समझ को इस्तेमाल करने में हिचकिचाते रहे

मुखिया की ही समझ श्रेष्ठ है, इसका क्या प्रमाण है
कभी ना कभी तो वोह भी गलती करेगा, आखिर वोह भी तो इंसान है

मुखिया अपनी ज़िमेदारी भूल चुका है, अब उसकी सरदारी हो गई
और हर मुखिया इससे ग्रस्त हो गया, इतनी भयंकर यह बीमारी हो गई

अब लोगों का पोषण नहीं, बस शोषण होता है
ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, दीलासो भरा उनका भाषण होता है

समाज को इस महामारी से कैसे मिलेगी निजात
मेरी समझ से तो अब लोगो को ज़िमेदारी लेनी होगी अपने हाथ।