सिसकी

सिसकी यह मन, कुछ यूं है भरे
यादों को तेरी जब, याद करे

लम्हें जो काटे थे, साथ हमने
उन यादों के ज़ख्म, फिर हुए हैं हरे

दिल की ख्वाहिश, वोह जाने बिना ही कहें
वोह पथ पर ना जाने, कहां छूट गए

वोह पत्थर हुए, हम हुए है पानी
पत्थर कैसे की, जो पानी पे तरे

कुछ पल

आरज़ू कुछ और भी है, कहीं दिल कहीं दिमाग है
अरमान कुछ और भी है, पर निकलने को जान है

आखरी सांसों की उधारी, चल रही है यहां
कुछ पलो के बाद जाने, मैं कहां मैं कहां

अरमानों का दम निकले, उससे पहले सुन लो ज़रा
इक दिन भी जिया नहीं मैंने, बस यूंही व्यतीत किया|