इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू
आबरू है बिक रही
बोली लगा रहा है आदमी
गमों नशो में लुट गया
बिखर गया है आदमी
किस शक्ल को देखूं मैं
किस नाज़ से बयां करू
इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू
शिकन की बस्ती बस्तियां
लहू हजुम की आंखों में
तल्खियां ही तल्खियां
यहां है सब की बातों में
उम्मीद-ए-चिराग़ बुझ रहे
किस तेल से जवां करू
इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू
शौंक दौलत-ए-जहान में
लहू की नदिया बही
कहीं खुद को बचाना था इसे
और ख़ुदा बचाना था कहीं
ख़त्म हो हैवानियत इंसान की
ना जाने क्या दवाँ करू
इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू
मंदिर के बाहर रो रहा
पुकारता है आदमी
गर मिले तो खुश है सभी
नहीं तो धितकारता है आदमी
इबादत नहीं यह लूट है
पर मुर्दो से क्या गिला करू
इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू
जलाद बन के काटता
टुकड़ों को बुनता आदमी
क्रोध में जब बह चला
कुछ ना है सुनता आदमी
कैसे मैं समझाऊं इसे
किस लेहज़े में कहा करू
इस आदमी की नस्ल को
किस लफ्ज़ से बयां करू