ख़ामोशी

बहुत दिनों से खामोश थी
आज अचानक क्यों इतना कुछ कह रही है

जो चन्द शब्द लिख के ही थक जाती थी
आज वोह नदी की तरह बह रही है

ऐ कलम क्या हुआ है तुझे, कहां से इतनी स्याही इकट्ठी की है
कहीं यह उन दुखते पलों के आंसुओ की बनी स्याही तो नहीं है

तोह कह ले जो कहना है, मैं तेरा एक एक शब्द सुनूंगा आज
तेरे साथ चलूंगा मैं, तेरे मन में चुभे कांटे को चुनूंगा आज

तू कह के, मन अपना खाली करले
फिर लगा कानों पे ताला, उस मन की रखवाली करले

क्यूंकि दुनिया वाले, किसी के लिए कुछ अच्छा कहते नहीं
और जो समझदार है, वोह उनकी बातों में बेहते नहीं

तो अब से तुम भी ना बहना
कोई कुछ भी कहे, तुम शांत ही रहना

यही ज़िन्दगी का फलसफा है, यही सच्चाई है
अरे दुनिया वालों ने तोह, राम पर भी उंगली उठाई है।

याद रखना

मेरी मजबूरी का फायदा ना उठायो, ऐ दुनिया वालों
मुझ अकेले को कमज़ोर जान, ना दबाओ ऐ दुनिया वालों

मेरा रब मेरे साथ मोजूद है
उसे शांत रहने दो, उसे गुस्सा ना दिलायो ऐ दुनिया वालों

गर वोह उठा, तो कयामत ने भी ऐसी कयामत देखी ना होगी
जैसी कयामत लाएगा वोह

देगा वोह तुम्हे तुम्हारे गुनाहों की सज़ा
सदियों दोजक में जलाएगा वोह

हर मज़लूम के साथ वोह है, यह याद रखना
गर सताया किसी मजबूर को, तो तुम्हारा हश्र क्या होगा, यह याद रखना

मेरी मजबूरी मेरे पिछले गुनाहों कि सज़ा है
गर तुमने भी किए गुनाह, तो हाल तुम्हारा क्या होगा, यह याद रखना।