क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है
अनजान शहर में प्यारे, एक हम ही हुए बेघर है
अनजान शहर में प्यारे, एक हम ही हुए बेघर है
सब को बताया, सब ज़ोर लगाया
पर हुआ ना कुछ, सब बेअसर है
क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है
आज दिन हुए है आठ, मुझे लग रहे है साठ
चौंसठ के चोकड़े में, बस कुछ इधर उधर है
क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है
अब कहां हम है जाए, हर जगह बड़ गए है किराए
शेयरिंग करने में भी लोग दिखाते है नखरे, और करते अगर मगर है
क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है
नोबत है अब यह आई, मंदिर में रात बिताई
समझाते मन अपने को, की मीठा फल सबर है
क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है।