एक हम ही हुए बेघर है

क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है
अनजान शहर में प्यारे, एक हम ही हुए बेघर है

सब को बताया, सब ज़ोर लगाया
पर हुआ ना कुछ, सब बेअसर है

क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है

आज दिन हुए है आठ, मुझे लग रहे है साठ
चौंसठ के चोकड़े में, बस कुछ इधर उधर है

क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है

अब कहां हम है जाए, हर जगह बड़ गए है किराए
शेयरिंग करने में भी लोग दिखाते है नखरे, और करते अगर मगर है

क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है

नोबत है अब यह आई, मंदिर में रात बिताई
समझाते मन अपने को, की मीठा फल सबर है

क्या बताएं तुमको, की हम जीते किस क़दर है।

मैं बिक गया बाज़ार में

मैं बिक गया बाज़ार में
मेरी आबरु कोई ले गया

मंदिर गया में पुकार में
मेरी जुस्तजु कोई ले गया

मैं बिक गया बाज़ार में
मेरी आबरु कोई ले गया

मैंने सोचा कतल-ए-आम हो
सब मर मिटे, जिम्मेवार जो

हथियार लिया इन हाथों में
मेरी मासूमियत कोई ले गया

मैं बिक गया बाज़ार में
मेरी आबरु कोई के गया