उड़ने की तमन्ना

उड़ने की तमन्ना और संभल कर चलना
यह एक ही सिक्के के दो हिस्से है

नहीं तो जनाब, खोलो किताब
उन जैसे लोगों के भरे पड़े किस्से है

की वोह लोग ऐसे गिरे
की गिरने की आवाज़ तक ना हुई

राख हुई उनकी उम्मीदें
और सपने जल गए जैसे हो रूई

दोनों ही पंख ग़र सबल हों
तब ही उड़ान भर सकते हो

हवा को शर्मिंदा
और क्षितिज का दीदार कर सकते हो

ग़र समझ गए तो खोलो दोनों पंख
और उड़ान भरो

छा जाओ पूरी कायनात पर
और अपनी मुठ्ठी में आसमान करो।

13.02.2013

यह इंसान

दो पल हसने को तरसता है यह इंसान
ज़िन्दगी को लंबा समझता है यह इंसान

सपनो के खंडर बनता है यह इंसान
मौत को क्षितिज के उस पर बताता है यह इंसान

कितनी भूल में समय बिता रहा है
आज को छोड़, आने वाले कल से उम्मीद लगा रहा है

असल में ज़िन्दगी तो चंद पलो की मोहताज है
कल किसने देखा है, जो है वोह आज है

पर बेमतलबी ज़िन्दगी में मतलब कहां से लाए
क्यों पैदा किया गए है सभी, किस मुंह से उन्हें बताएं

शायद खुशी की तलाश में यह सब हो रहा है
आज की उम्मीदें, आने वाला कल ढोह रहा है

इक ऐसे मुकाम की तलाश करो, जहांकी यह तलाश ख़तम हो जाए
स्कुन से लें सके सांस जहां हर कोई, और ज़िन्दगी, ज़िन्दगी पर मुस्कुराए