यह एक ही सिक्के के दो हिस्से है
नहीं तो जनाब, खोलो किताब
उन जैसे लोगों के भरे पड़े किस्से है
की वोह लोग ऐसे गिरे
की गिरने की आवाज़ तक ना हुई
राख हुई उनकी उम्मीदें
और सपने जल गए जैसे हो रूई
दोनों ही पंख ग़र सबल हों
तब ही उड़ान भर सकते हो
हवा को शर्मिंदा
और क्षितिज का दीदार कर सकते हो
ग़र समझ गए तो खोलो दोनों पंख
और उड़ान भरो
छा जाओ पूरी कायनात पर
और अपनी मुठ्ठी में आसमान करो।
13.02.2013