शायद मैंने पी है

सर्द हवाओं ने बताया की मैंने पी है
उस की आँखों ने दिखाया की मैंने पी है

शायद मैंने पी है

इस पल में इतना मज़ा है के साकी
की सारी ज़िन्दगी इसके आगे फिक्की है

शायद मैंने पी है

यह नशा जाम-ए-शराब का नहीं, मेरे मेहबूब की मोहब्बत का है
जिसने एक नज़र में ज़िन्दगी जवाँ कर दी है

शायद मैंने पी है

अब नशा उसके दीदार का ऐसा है मूझे
लगता है की सारी दुनिया मैंने मुठी में की है

शायद मैंने पी है

मजबूरियां

मुश्किल हालातों ने मजबूरियों को रहने की जगह क्या दी जिंदगी में,
की अब वोह जाने का नाम ही नहीं ले रही है।

हर बार कोई न कोई बहाना बता के,
कुछ देर ओर की मोहलत मांग कर ठहर जाती है।

इस दफ़ा तो कोई बहाना सुनने वाला नहीं हूं मैं,
हाथ पकड़ कर निकाल बाहर करने वाला हूं मैं।

पर मेरी ताक़त-ए-परवाज़ कुछ कम है इन दिनों,
बस इसी मजबूरी के चलते कुछ कह नहीं पाता हूं मैं।

मजबूरियों ने चारो तरफ से ऐसे घेरा है मुझे,
के बेबस और लाचार सा महसूस करता हूं खुद को।

ए मेरे मौला, अब तू ही इमदाद कर मेरी,
मुझे मेरी सब मजबूरियों से निजात दिला दे।

इंसान बना के भेजा था ना तूने मुझे मेरे मौला,
मेरे अंदर बैठा वो इंसान बस जगा दे।

जगा यकीन अपने रहम-ओ-करम का मेरा अंदर मौला,
मेरे अंदाज-ए-नज़र मैं असर बड़ा दे।

मजबूरियों को बदल दे कोशिशों में मेरी,
मुझे मेरी मंजिल-ए-आराम तक पहुंचा दे।।