मुक्ति


गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम
मान लो कथन यह सच्चा
तो मुक्त हो तुम

मन ही है,
जो तुम्हे भटकाए
असल को छुड़वा,
अपने पीछे लगाए
जब छोड़ो पीछा इसका,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम

पर मन से परे हम,
कैसे है जाए
हर जगह इसने,
अपने सिपाही बिठाए
जो पकड़ो सांस का रस्ता,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा
तो मुक्त हो तुम

देखते देखते यह,
सिमटता है जाए
मिटने से पहले जब,
मन आंखें टिमटिमाए
ध्यान रहे तब पक्का,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा,
तो मुक्त हो तुम

गहन नींद में जब,
यह खो जाए
गर तब भी तुम,
अगर ना डगमगाए
जैसे ही मैं ने मैं को देखा,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा,
तो मुक्त हो तुम

असल को तुम,
जब पहचानोगे
तुम क्या हो,
तुम यह जानोगे
मिट जाएगा कर्मों का लेखा,
तो मुक्त हो तुम

गर ना करो कोई इच्छा, तो मुक्त हो तुम

ख़ुशी की चाहत

अगर कोई खुश है तोह वोह
क्या और खुश होना चाहेगा।

अगर हाँ तो कितनी और
ख़ुशी से उसका मन भर जाएगा।

ता उम्र भाग के देख लिया
मन तोह मेरा भरता नहीं।

जितना भी मिल जाये इसे
यह कभी उतने में सब्र करता नहीं।

क्या यही ज़िन्दगी का मकसद है
या कुछ और भी पाना है।

या सच में कोई मकसद नहीं है
सिर्फ ख़ुशी ढूंढना ही बस एक बहाना है।।