बीता समय, अच्छा था या बुरा, कुछ याद नहीं । क्या वोह लम्हे बरकत के थे या हरज़े के, कुछ याद नहीं ।। याद है तो बस इतना, की जिंदगी थी और हम जिंदा थे । क्यों और कैसे, उतना सब तो अब याद नहीं ।। याद करके करना भी क्या है ओ शायर, समय तो बह कर गुज़र गया । आज खड़ा है सामने हाथ बढ़ाए, की चलो कुछ नई यादें बनाएं ।। अब कोशिश हो की ऐसे जिए, की लम्हा-दर-लम्हा याद रहे । सजाए कुछ ऐसा यादों के आशियाने को, की हमारे जाने के बाद भी वोह आबाद रहे ।।