समय

बीता समय, अच्छा था या बुरा, कुछ याद नहीं ।
क्या वोह लम्हे बरकत के थे या हरज़े के, कुछ याद नहीं ।।

याद है तो बस इतना, की जिंदगी थी और हम जिंदा थे ।
क्यों और कैसे, उतना सब तो अब याद नहीं ।।

याद करके करना भी क्या है ओ शायर, समय तो बह कर गुज़र गया ।
आज खड़ा है सामने हाथ बढ़ाए, की चलो कुछ नई यादें बनाएं ।।

अब कोशिश हो की ऐसे जिए, की लम्हा-दर-लम्हा याद रहे ।
सजाए कुछ ऐसा यादों के आशियाने को, की हमारे जाने के बाद भी वोह आबाद रहे ।।

नाकामयाबीयां

मेरी नाकामयाबीयां बस मेरी ही है
मैं ही हूं जो की हंसता रहा, मुस्कुराता रहा
यह कह के, की अभी तो वक्त बहुत बाकी है

जो भी यह बिखरी चीजे है, यह सब मेरी है
मैं ही था जो बेपरवाह होकर इनको गिरता गया
यह सोच के, की अभी तो वक्त बहुत बाकी है

मैं अपने आप को कहता रहा की संभलना क्यों है
थोड़ी देर और इसी नशे में रहने दो खुद को
क्योंकि अभी तो वक्त बहुत बाकी है

मुझे सच में यकीन था कि बहुत वक्त है पास मेरे
उन कीमती पलो के सिक्के को मैं लुटाता गया
यह सोच के, की अभी तो वक्त बहुत बाकी है

आज मेरे हाथों मैं वक्त की लकीरे हैं और कुछ भी नही
सब आगे बड़ गए, मेरे पास खड़ा कोई भी नहीं
अब लगता है की निकल गया सारा वक्त, कहां बचा कुछ बाकी है

मेरी नाकामयाबीयां बस मेरी ही है
मैं ही हूं जो की हंसता रहा, मुस्कुराता रहा
यह कह के, की अभी तो वक्त बहुत बाकी है