इस बार का झटका बहुत भारी पड़ा
झटके पहले भी लगे बहुत,
पर इस बार का झटके ने बहुत कमज़ोर किया
कुछ उम्र का तक़ाज़ा भी था,
और कुछ पहले लगे झटको की सनसनाहट बाकी थी अभी
फिर भी मुस्कुराकर जीने का फैंसला किया था मैंने,
सोचा, की जितना वक्त मिला है चलो उतना ही सही
मेहर उस रब की जिसने इस बार भी बचा लिया,
सब झंझटों परिशानियो को कुछ दिनों मैं ही सुलझा दिया
अब समझ में यह नहीं आ रहा की आगे क्या करामात करू,
जिंदगी के बिखरे टुकड़े समेटु या नए सिरे से शुरुआत करू
आगे क्या करामात करू।।