झटका

इस बार का झटका बहुत भारी पड़ा
झटके पहले भी लगे बहुत,
पर इस बार का झटके ने बहुत कमज़ोर किया

कुछ उम्र का तक़ाज़ा भी था,
और कुछ पहले लगे झटको की सनसनाहट बाकी थी अभी

फिर भी मुस्कुराकर जीने का फैंसला किया था मैंने,
सोचा, की जितना वक्त मिला है चलो उतना ही सही

मेहर उस रब की जिसने इस बार भी बचा लिया,
सब झंझटों परिशानियो को कुछ दिनों मैं ही सुलझा दिया

अब समझ में यह नहीं आ रहा की आगे क्या करामात करू,
जिंदगी के बिखरे टुकड़े समेटु या नए सिरे से शुरुआत करू

आगे क्या करामात करू।।

ज़िन्दगी समझ जाएगी

ज़िन्दगी तो कोरा कागज़ है
कुछ भी लिख दो, यह तो समझ जाएगी

मान लेगी उसे अपनी किस्मत
और उसे सुधारने में लग जाएगी

राही तु डगर पर पांव तो रख
मंजिल ख़ुद-बा-ख़ुद तुझे नज़र आएगी

यूहीं लंबी लगती है डगर तुझको
कुछ घड़ियों में ही यह गुज़र जाएगी

गर कभी थोड़ी खुशियां, ज़्यादा गम हो
तो देख लेना उनके, जिनसे तुम्हारे कम हो
उन के देखते ही, ख़ुद के यह भूल जाएगी

ज़िन्दगी ना रुकती है, ना तुम रुकना
गर लगा के तुम हारे, फिर भी ना झुकना
चलते चलते यह ख़ुद ही संभल जाएगी

गर समझ कर जिये, जैसे जीना है
तो हर दिन उजियारा और रात पूर्णिमा है
फिर तो मौत भी पूछ कर आएगी

ज़िन्दगी तो कोरा कागज़ है
कुछ भी लिख दो, यह तो समझ जाएगी।