मेरे शहर की आबादी बड़ गई है
सड़को पे लोगो की आवाजाही बड़ गई है
सड़के, दुकानें, गालियां और घर
सब भीड़ से भर गए है
छोटे छोटे मकानों में कबूतरों की तरह रहने लगे है लोग
बड़े मकान में रहने के जो थे सपने, वोह जेहन से उतर गए है
पहले दो तीयाही जी कर और एक तियाही ज़िन्दगी सो कर गुजरती थी
अब एक तियाहि से ज्यादा तोह सड़क पे गुजर जाती है, जीने और सोने का तोह पूछो ही मत
सड़क को ही अब मैं अपना घर मानता हूं
उससे घर पर ना होने कि तकलीफ कम है
क्यूंकि इतने लोग होने के बावजूद भी, जितने फासले दिलो के है
उनसे तोह अभी सड़को के फासले कम है।।
Category: Poems
झटका
इस बार का झटका बहुत भारी पड़ा
झटके पहले भी लगे बहुत,
पर इस बार का झटके ने बहुत कमज़ोर किया
कुछ उम्र का तक़ाज़ा भी था,
और कुछ पहले लगे झटको की सनसनाहट बाकी थी अभी
फिर भी मुस्कुराकर जीने का फैंसला किया था मैंने,
सोचा, की जितना वक्त मिला है चलो उतना ही सही
मेहर उस रब की जिसने इस बार भी बचा लिया,
सब झंझटों परिशानियो को कुछ दिनों मैं ही सुलझा दिया
अब समझ में यह नहीं आ रहा की आगे क्या करामात करू,
जिंदगी के बिखरे टुकड़े समेटु या नए सिरे से शुरुआत करू
आगे क्या करामात करू।।