मेरी पहली उड़ान है
हवा का रुख मेरी मंज़िल की और मोड़ दे
मेरी पहली उड़ान है
बड़ी मुद्दत से मुझे, इसी लम्हे का इंतज़ार था
पंखों की ही देरी थी, मेरा मन तो कब से त्यार था
आज मैं ऐसे उड़ु, की हवा को भी शर्मिंदा कर दु
जहां से भी गुज़रू, वहां के कण कण में रूह भर दु
रियासतों और विचारों की, सब लकीरें फिक्की कर दु
पूरी कायनात लाकर, अपने महबूब के क़दमों में रख दु
इस छोटी सी ज़िन्दगी में, बस कोशिश इतनी है मेरी
मेरी उड़ान सब को ख़ुशी दे, और टूटे दिलों को जोड़ दे
ऐ ख़ुदा, मुझे हाथों में उठा, और आसमान में खुला छोड़ दे
मेरी पहली उड़ान है।