जाम-ए-हकीक़त

खनकते जाम
सुर्खियों में नाम
ना खबर सुबह
ना खबर शाम
क्या यही है इनाम
क्या यही है इनाम
मेरी बेथक मेहनत का
क्या यही है अंजाम

मैं क्यों चला था
मैं किस लिए चला था
क्या कर दिखाना था ज़माने को
अरे छोड़ो यारों, मैं आम आदमी ही भला था

इस चमक ने मुझको अंधा कर के
अपनो से बहुत दुर किया
छीन के मेरे मासूम पन को
ज़ालिम और मगरूर किया

यहां दिखती है रोशनी, पर अंधेरा है
लोग कहने है सुरज मुझे
और मैं ही ढूंढू कहां सवेरा है

अब वापिस जाने की राहें ना दिखे मुझे
रिश्ते नाते लग रहे उलझे उलझे

सुर्खियों में नाम भी कहीं खो गए
खनकते जाम ना जाने कहां सो गए

अब लोगों को नाम भी मेरा याद नहीं
कहते है कि हां कोई फला था

अरे छोड़ो यारों, मैं आम आदमी ही भला था।

बिना सांसों के

चंद घड़ियां ही बाकी है इस तमाशे की
देखने वालों की धड़कनों को थमाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

मिट्टी के घरों मैं तो बहुत रह लिए हम
अब दिलों में अपना आशियाना बनाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

अब तो आखरी सांस का भी डर नहीं
मौत के सामने भी मुस्कुराना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

और कौन है जो गया नहीं
इस महफ़िल में तो आना जाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

मस्ती से निकलूंगा अपनी सवारी पर
सुना है कि वोह सफ़र बहुत सुहाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

यहां रुक कर भी क्या करोगे ऐ विशाल
यह तो सराए है, ना की तेरा ठिकाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

उड़ान भरों और खुल के जियो तुम
मौत को भी शर्मिंदा कर जाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

मोहब्बत करो हर किसी से
हर खुशी एक नज़राना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

समझ लो इस खेल को अच्छी तरह प्यारे
कुदरत को यह खेल तुम्हे कितनी बार खिलाना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है

जान लो सब दांव पेंच इसके
हमें उसके खेल में उसी को हराना है

बिना सांसों के हमें जी कर दिखाना है