मेरी सजावत भी तुम हो
मेरी इबादत भी तुम हो
तुम ही हो जन्नत के नज़ारे
तुम ही हो दिल जिसे पुकारे
तुम ही हो वोह न्यारी मूरत
तुम ही हो सबसे ख़ूबसूरत
करुणा, दया, प्यार और ममता तुम से झलकती है
तुम्हे याद करते हुए, पलक तक ना झपकती है
तुम उन ऋषियों की तपस्या हो, जो प्रभु को पाना चाहते है
तुम समंदर का वोह क्षितिज हो, जिसमें सूरज डूब जाना चाहते है
तुम वोह हो जिसमें मेरा मन, हर पल ही पल सुख पाता है
तुम हो मेरी मां, जिसे देखकर मेरा दिल मुस्कुराता है।