हरी हिलता क्यों नहीं

ॐ से बनी यह दुनिया, बोम्ब तक पहुंच गई
फिर भी हरी हिलता क्यों नहीं

लोग दर्द में करहा रहे है
बेगुनाह मर रहे है, और तमाशाही तालियां बजा रहे है
खून की नदियां, बह बह कर सुख गई
अब लाल हुई इस इस मिट्टी में, कोई फूल खिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

ताकतवर, कमज़ोर को दबा रहे है
इंसानियत बिक रही है, और हैवान बोलियां लगा रहे है
कहने को तो बहुत कुछ है इस जहान में
पर पेट भर खाना, गरीब के बच्चे को मिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

कहीं सुकून नहीं, चारो तरफ ही शोर है
कोई यहां पाक नहीं, हर दिल में छुपा चोर है
विचारों की ऐसी गुरबत क्यों है यहाँ
की अब गीता ज्ञान से भी, गिरता यह मन संभालता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं।

ना जा चन्ना

वे ना जा चन्ना तू परदेस हा
वे अपने वरगा ना कोई देस हा
वे मेरी मां ने वाजा मैनू सी मारिया
वे रोंदी रई सी वेख की पुत मेरा जा रिहा
पर मेरी ता मत मर सी चुकी
दिल दी एह ख्वाहिश ना रुकी
ते मैं परदेस आ गया

हुण एथे बुरबुर रोना है
वे जागदा ना सोना है
वे अपने याद बड़ा आऊंदे ने
फेर मन दिल बड़ा पछतौंदे ने
की मैं क्यों परदेस आ गया

मैनु कोई घर पहुंचा दवो
मेरे घर दा रास्ता दिखा दवो
वे वाज़ा हुण मैं मारा वे
वे ज़िन्दगी हुण हारा वे
ते दिल विच हुण मैं सोचदा
की मैं क्यों परदेस आ गया