मेरी पहली उड़ान है

ऐ खुदा, मुझे हाथों में उठा, और आसमान में खुला छोड़ दे
मेरी पहली उड़ान है

हवा का रुख मेरी मंज़िल की और मोड़ दे
मेरी पहली उड़ान है

बड़ी मुद्दत से मुझे, इसी लम्हे का इंतज़ार था
पंखों की ही देरी थी, मेरा मन तो कब से त्यार था

आज मैं ऐसे उड़ु, की हवा को भी शर्मिंदा कर दु
जहां से भी गुज़रू, वहां के कण कण में रूह भर दु

रियासतों और विचारों की, सब लकीरें फिक्की कर दु
पूरी कायनात लाकर, अपने महबूब के क़दमों में रख दु

इस छोटी सी ज़िन्दगी में, बस कोशिश इतनी है मेरी
मेरी उड़ान सब को ख़ुशी दे, और टूटे दिलों को जोड़ दे

ऐ ख़ुदा, मुझे हाथों में उठा, और आसमान में खुला छोड़ दे

मेरी पहली उड़ान है।

वक़्त

वक़्त का दस्तुर भी अज़ब निराला है
कभी गिराया और कभी इसी ने संभाला है

यूं तो कायर है, पल पल करके सामने आता है
अतीत की चुभन और भविष्य की फ़िकर, इन दोनों में ही भरमाता है

कभी कमजोर तो कभी बलवान जान पड़ता है
जहां कदर नहीं, वहां तो भरपूर है मगर, कहीं चंद घड़ियां देने में भी अखरता है

मैं इसके रूबरू होना चाहता हूं
मैं इसे बेपर्दा करना चाहता हूं

पर जब भी मुशक्कत करता हूं, कहीं दूर पहुंच जाता हूं
असल को छोड़कर, बेमतलबी गालियों में जरूर पहुंच जाता हूं

पर ज़िद है मेरी, की इक बार तो सामना हो
जिस वक़्त ने चलाया तय ज़िन्दगी, उस वक़्त का कुछ तो जानना हो
इक बार तो सामना हो।

24.02.2015