हरी हिलता क्यों नहीं

ॐ से बनी यह दुनिया, बोम्ब तक पहुंच गई
फिर भी हरी हिलता क्यों नहीं

लोग दर्द में करहा रहे है
बेगुनाह मर रहे है, और तमाशाही तालियां बजा रहे है
खून की नदियां, बह बह कर सुख गई
अब लाल हुई इस इस मिट्टी में, कोई फूल खिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

ताकतवर, कमज़ोर को दबा रहे है
इंसानियत बिक रही है, और हैवान बोलियां लगा रहे है
कहने को तो बहुत कुछ है इस जहान में
पर पेट भर खाना, गरीब के बच्चे को मिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

कहीं सुकून नहीं, चारो तरफ ही शोर है
कोई यहां पाक नहीं, हर दिल में छुपा चोर है
विचारों की ऐसी गुरबत क्यों है यहाँ
की अब गीता ज्ञान से भी, गिरता यह मन संभालता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं।

जादू की नगरी

यह दुनिया है उल्फत
जादू की नगरी

यहां नए है नज़ारे
हर एक नई है डगरी

यह काला है जादू
ना इसका कोई तोड़

यह सर चड़ के बोले
ना जाया जाए भी छोड़

यह पागल बना के
नचाए अपने इशारे

यहां आके हमने सीखा
क्या हमारे, क्या तुम्हारे

कहते जग को कविता
पर किस ने रची है

यह किसने रची है

पर जैसी भी है
यहां जी लेते है लोग

जब कुछ मिलकर बिछड़ता
कर लेते है शोक

कुछ अपने है, कुछ पराए भी
जो खिले थे कभी वोह मुरझाए भी

जाना सब को है यहां से
कहते चलती चक्री है

दुनिया जादू की नगरी है