सोचता हुं कि निकलु मन की कैद से
अरसा हो गया है इस कैद में
अरसा हो गया है इस कैद में
कितने सूरज चड़ के उतर गए
पर मेरी आज़ादी कि कोई किरण मेरे दरवाज़े तक ना पहुंची
आसान नहीं है, इन दीवारों को तोड़ पाना
समय और मेहनत दोनों की ही जरूरत है
ना जाने कब मैं की मैं को छोड़ पाऊंगा
ना जाने कब इन दीवारों को तोड़ पाऊंगा।