तेरे मिलने की उम्मीद

तेरे मिलने की उम्मीद से, दिल में सकून है
सब फीका है अब तो, तुझे मिलने का जुनून है

तेरे दीदार की चाहत का असर कुछ ऐसा है
की ज़िन्दगी ने सांसों कि मोहताजगी छोड़ दी है

हर घड़ी जो तेरी याद रहे, वही दौलत-ए-ज़िन्दगी है
चंद सिक्को के खातिर जो करते थे, वोह चाकरी छोड़ दी है

तुझसे मिलने की आरज़ू में, कटता है अब वक़्त मेरा
ख़ुदा की जो करते थे, वोह बंदगी छोड़ दी है।

ख़ामोशी

बहुत दिनों से खामोश थी
आज अचानक क्यों इतना कुछ कह रही है

जो चन्द शब्द लिख के ही थक जाती थी
आज वोह नदी की तरह बह रही है

ऐ कलम क्या हुआ है तुझे, कहां से इतनी स्याही इकट्ठी की है
कहीं यह उन दुखते पलों के आंसुओ की बनी स्याही तो नहीं है

तोह कह ले जो कहना है, मैं तेरा एक एक शब्द सुनूंगा आज
तेरे साथ चलूंगा मैं, तेरे मन में चुभे कांटे को चुनूंगा आज

तू कह के, मन अपना खाली करले
फिर लगा कानों पे ताला, उस मन की रखवाली करले

क्यूंकि दुनिया वाले, किसी के लिए कुछ अच्छा कहते नहीं
और जो समझदार है, वोह उनकी बातों में बेहते नहीं

तो अब से तुम भी ना बहना
कोई कुछ भी कहे, तुम शांत ही रहना

यही ज़िन्दगी का फलसफा है, यही सच्चाई है
अरे दुनिया वालों ने तोह, राम पर भी उंगली उठाई है।