हम है आज़ाद परिंदे

हर गम से तु
मज़बूरी से
आज़ादी दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

मेरे पंखों को
खुलने की
जगह दे

इतनी की
सूरज को भी
हम छुपा दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

कुछ पाने कि
हर ख्वाहिश ही
फ़ना कर दे

तेरे इश्क़ की
चाहत से ही
मुझे भर दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

मेरे कन कन को
आज़ादी से
ऐसे भर दे

की सांस-सांस मेरी बोले
हम है
आज़ाद परिंदे

हम है
आज़ाद परिंदे

ना जाने

सोचता हुं कि निकलु मन की कैद से
अरसा हो गया है इस कैद में

कितने सूरज चड़ के उतर गए
पर मेरी आज़ादी कि कोई किरण मेरे दरवाज़े तक ना पहुंची

आसान नहीं है, इन दीवारों को तोड़ पाना
समय और मेहनत दोनों की ही जरूरत है

ना जाने कब मैं की मैं को छोड़ पाऊंगा
ना जाने कब इन दीवारों को तोड़ पाऊंगा।