समय

बीता समय, अच्छा था या बुरा, कुछ याद नहीं ।
क्या वोह लम्हे बरकत के थे या हरज़े के, कुछ याद नहीं ।।

याद है तो बस इतना, की जिंदगी थी और हम जिंदा थे ।
क्यों और कैसे, उतना सब तो अब याद नहीं ।।

याद करके करना भी क्या है ओ शायर, समय तो बह कर गुज़र गया ।
आज खड़ा है सामने हाथ बढ़ाए, की चलो कुछ नई यादें बनाएं ।।

अब कोशिश हो की ऐसे जिए, की लम्हा-दर-लम्हा याद रहे ।
सजाए कुछ ऐसा यादों के आशियाने को, की हमारे जाने के बाद भी वोह आबाद रहे ।।

मैं लड़की देखने जा रहा हुं

मैं लड़की देखने जा रहा हुं

पंडित जी जब हमारे घर आए थे
झोला भर के फोटोयो का लाए थे
हर फोटो को देख देख कर
अलग अलग अटकलें लगा रहा हूं

मैं लड़की देखने जा रहा हुं

पंडित जी ने पूछा, कि लड़की MA हो या MBBS पास हो
मैंने कहा पंडित जी यह सब छोड़ो
बस दिखने में खासम ख़ास हो
मैं तो शक्ल के नंबर लगा रहा हूं

मैं लड़की देखने जा रहा हुं

अब रातों को नींद भी कहां आती है
लगी रहती है एक बेचैनी सी
मैं शादी की बाद की रात का सोच के शर्मा रहा हूं

मैं लड़की देखने जा रहा हुं।