मन समता में परविष्ठ रहे, ना कामनाओं का प्रवेश हो
मन अपना रूप ना खोए कभी, निष्काम हो निवृत्त हो
मन कल्पनायो से भिन्न हो, अपने ही रूप में स्थित हो
ना जो निकल गया उसका विषाद हो, ना ही कल का प्रादुर्भाव हो
मन शून्य हो जाए मगर, हर सवाल का पर जवाब हो
ना अभीष्ट की हो कल्पना, ना अनिष्ट का संताप हो
सब मिथ्या मिट्टी है यहां, हर क्षण यही बस ज्ञात हो
हर क्षण प्रयत्न करते रहे, पाने के ऐसे जज़बात हो
हर दिन ऐसा हो मेरा, जैसे नई हुई शुरुआत हो
मद मस्त हो, मद मस्त हो, इक हम रहे और एकांत हो
जीने का बस यही सिद्धांत हो, इक हम रहे और एकांत हो।
13.05.2014