मेरी ही गलती थी

मेरी ही गलती थी

तुम्हे पीछे से बुलाना
जब सामने खड़ा था तमाशाई ज़माना

मेरी ही गलती थी

यूं बिना बताएं तेरी चोखट पर आना
आते जातों को अपनी मोहब्बत के किस्से सुनना

मेरी ही गलती थी

कुछ ना कुछ बना लेते थे तुमसे मिलने का बहाना
तुम आ जाती थी और मेरा भूल जाना

मेरी ही गलती थी

तेरी वफ़ा को मैं करता हूं सजदे
की मेरी गलतियों के बावजूद भी, ना ठुकरा कर सीने से लगाना

जबकि, मेरी ही गलती थी

तेरी सादगी, तेरी मैकशी ने असल मोहब्बत सीखा दी मुझे
की गर इश्क़ है तो आशिक़ की हर गलती को कैसे नज़रअंदाज़ कर जाना

जबकि, मेरी ही गलती थी

होंगी कृष्ण संग गोपिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

राधे ब्रज मा बैठी बिलके
गए नहीं कृष्ण इस बार भी मिलके
काटे थे दिन मैंने गिन गिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

पूछूंगी कहां अब तक दिन बिताए
मिलने तुम इतने दिन से ना आएं
हुआ तुमसे मिलने कठिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

जाने कहां वोह रास रचाए
गोपियों का मन कृष्ण पे आए
कृष्ण तो है भी चंचल मन, कमसिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

जब कोई गोपी कृष्ण को छूती
दिल करता उसे कर दुं विभुति
कृष्ण बस मेरे ही स्वामीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

काश मैं होती कृष्ण के संग
देख लेती सवारें के रंग
राधा तड़पे जैसे पानी बिन मीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

यह सब सोच रही थी राधा रानी
पीछे सुनी कान्हा को वाणी
मुड़ देखा, खड़े रसलीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

राधा की सुध बुध सी खो गई
कृष्ण को देख बस मस्त सी हो गई
कृष्ण कहें की राधा तेरे ही आधीन

संग नहीं थी कोई गोपीन।