मां थक गया चलते चलते

मां थक गया चलते चलते
मैं इन पथराई हुई सी रहो में

थामो अब मुझको बाहों में

उस गोद का सहारा दो
जिस गोद में हम खेले है

दिल से लगा को बेटे को
अरसे से हम अकेले है

अब आंसू भी है सूख चुके
तेरी यादों में बहते बहते

पत्थर से मां हम बन है गए
तेरे बिन कहीं और रहते रहते

इस पत्थर को कोमल कर दो
मां तुम अपने दुलार से

मां छू दो तुम मेरे दिल को
भर जाए जीवन प्यार से

मां जल्दी करो, ना देर करो
दम निकल ना जाए इन्हीं आहों में

थामो अब मुझको बाहों में

थामो अब मुझको बाहों में

हरी हिलता क्यों नहीं

ॐ से बनी यह दुनिया, बोम्ब तक पहुंच गई
फिर भी हरी हिलता क्यों नहीं

लोग दर्द में करहा रहे है
बेगुनाह मर रहे है, और तमाशाही तालियां बजा रहे है
खून की नदियां, बह बह कर सुख गई
अब लाल हुई इस इस मिट्टी में, कोई फूल खिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

ताकतवर, कमज़ोर को दबा रहे है
इंसानियत बिक रही है, और हैवान बोलियां लगा रहे है
कहने को तो बहुत कुछ है इस जहान में
पर पेट भर खाना, गरीब के बच्चे को मिलता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं

कहीं सुकून नहीं, चारो तरफ ही शोर है
कोई यहां पाक नहीं, हर दिल में छुपा चोर है
विचारों की ऐसी गुरबत क्यों है यहाँ
की अब गीता ज्ञान से भी, गिरता यह मन संभालता क्यों नहीं

हरी हिलता क्यों नहीं।