मन

मन शांत रूप रहे सदा, ना राग हो ना द्वेष हो
मन समता में परविष्ठ रहे, ना कामनाओं का प्रवेश हो

मन अपना रूप ना खोए कभी, निष्काम हो निवृत्त हो
मन कल्पनायो से भिन्न हो, अपने ही रूप में स्थित हो

ना जो निकल गया उसका विषाद हो, ना ही कल का प्रादुर्भाव हो
मन शून्य हो जाए मगर, हर सवाल का पर जवाब हो

ना अभीष्ट की हो कल्पना, ना अनिष्ट का संताप हो
सब मिथ्या मिट्टी है यहां, हर क्षण यही बस ज्ञात हो

हर क्षण प्रयत्न करते रहे, पाने के ऐसे जज़बात हो
हर दिन ऐसा हो मेरा, जैसे नई हुई शुरुआत हो

मद मस्त हो, मद मस्त हो, इक हम रहे और एकांत हो
जीने का बस यही सिद्धांत हो, इक हम रहे और एकांत हो।

13.05.2014

जादू की नगरी

यह दुनिया है उल्फत
जादू की नगरी

यहां नए है नज़ारे
हर एक नई है डगरी

यह काला है जादू
ना इसका कोई तोड़

यह सर चड़ के बोले
ना जाया जाए भी छोड़

यह पागल बना के
नचाए अपने इशारे

यहां आके हमने सीखा
क्या हमारे, क्या तुम्हारे

कहते जग को कविता
पर किस ने रची है

यह किसने रची है

पर जैसी भी है
यहां जी लेते है लोग

जब कुछ मिलकर बिछड़ता
कर लेते है शोक

कुछ अपने है, कुछ पराए भी
जो खिले थे कभी वोह मुरझाए भी

जाना सब को है यहां से
कहते चलती चक्री है

दुनिया जादू की नगरी है