मेरा आखरी वक़्त है

ना करो मुझसे झिलाकर बात, मेरा आखरी वक़्त है
ना करो दिल दुखाने वाली बात, मेरा आखरी वक़्त है

जब भी तुम मुझे गुस्सा दिखाते हो, मैं परेशान हो जाता हूं
गुम सुम सा हो जाता हूं, मैं भीतर से लहूलुहान हो जाता हूं

हां मैने भी कहें है, कड़वे शब्द और तीर जैसी नोकिली बातें
क्या करू भीतर का दुख संभालता ही नहीं था, जब भी तुम कुछ कह जाते

मैं तो यहां अपना वक़्त पूरा कर रहा हूं
जल्दी ख़त्म हो यह ज़िन्दगी, इसीलिए तेज़ी से सांसे भर रहा हूं

पर मन में मलाल है, कि बहुत दिनों से तुमसे बात नहीं की है मैंने
क्रोध और डर दोनों, दे ही नहीं रहे है जीने

क्रोध इस बात का है, कि तुमने ऐसा कहां वैसा कहां
और डर इस बात का है, की शायद बात करने का मोका ना मिले दोबारा

तो अब बात शुरू कर ले, ताकि मेरे जाने पर तुम्हे बात ना करने का गिला ना रहे
नहीं तो शायद, दीवारों तस्वीरों को सुनायोगे वोह बातें और किस्से अनकहे

पर मुझे चुभे ऐसा कुछ ना कहना, मेरा आखरी वक़्त है
हो सके तो जाने के पलों में मेरे साथ ही रहना, मेरा आखरी वक़्त है।

बाकी कुछ नहीं

समय तो ख़ुद-बा-ख़ुद ही निकल जाता है
जब तक जिए फिज़ाओं में

चंद घड़ियां भी बहुत लंबी लगती है
ग़म की छाओ में

दोनों ही वक़्त, झूठे और बेमतलबी है
पर जीवन भर समझ ना सके

कोल्हू के बैल की नाइ
बस चलते ही गए, चलते ही गए

ज़मीर बेचा और प्यार बिक गया
अच्छा वक़्त लाने के लिए

कमबख़्त वक़्त तोह आया नहीं
पर मौत आ गई सुलाने के लिए

अब अपना ही घर नहीं मिल रहा है मुझे
अपने ही गांव में

तन मेरे बहुत जल रहा है
पुराने बरगद की छाओं में

अब अक्ल आए भी तो क्या
तांश के पत्तो का खेल तो पूरा हो गया

अब माफ़ी मांगे भी तो क्या
ज़माने भर के लिए में बुरा हो गया

अब सोच रहा हूं कि कुदरत एक मौका और दे अगर
तो गलतियां सुधार लू

इस बार औरों के लिए जियू
और ज़माने भर को प्यार दू

पर यहां दूसरा मौका देते नहीं
कहते की बेऐतबारी है

अल्लाह को रो कर क्या कहूं
जब गलती ही हमारी है

गर वक़्त है तो जान लो विशाल
सब मिट्टी है और मेला है

पूरे यकीन से इबादत करो उस रब की
गर मजनू है तो लेला है

वोह है, वोह है, वोह है, वोह है
बाकी कुछ नहीं

यह उसकी महफ़िल का नशा है
शराब और साकी कुछ नहीं

इबादत ही सच है, बाकी कुछ नहीं
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं।