मुश्किल हालातों ने मजबूरियों को रहने की जगह क्या दी जिंदगी में,
की अब वोह जाने का नाम ही नहीं ले रही है।
हर बार कोई न कोई बहाना बता के,
कुछ देर ओर की मोहलत मांग कर ठहर जाती है।
इस दफ़ा तो कोई बहाना सुनने वाला नहीं हूं मैं,
हाथ पकड़ कर निकाल बाहर करने वाला हूं मैं।
पर मेरी ताक़त-ए-परवाज़ कुछ कम है इन दिनों,
बस इसी मजबूरी के चलते कुछ कह नहीं पाता हूं मैं।
मजबूरियों ने चारो तरफ से ऐसे घेरा है मुझे,
के बेबस और लाचार सा महसूस करता हूं खुद को।
ए मेरे मौला, अब तू ही इमदाद कर मेरी,
मुझे मेरी सब मजबूरियों से निजात दिला दे।
इंसान बना के भेजा था ना तूने मुझे मेरे मौला,
मेरे अंदर बैठा वो इंसान बस जगा दे।
जगा यकीन अपने रहम-ओ-करम का मेरा अंदर मौला,
मेरे अंदाज-ए-नज़र मैं असर बड़ा दे।
मजबूरियों को बदल दे कोशिशों में मेरी,
मुझे मेरी मंजिल-ए-आराम तक पहुंचा दे।।
Tag: prayer
बाकी कुछ नहीं
जब तक जिए फिज़ाओं में
चंद घड़ियां भी बहुत लंबी लगती है
ग़म की छाओ में
दोनों ही वक़्त, झूठे और बेमतलबी है
पर जीवन भर समझ ना सके
कोल्हू के बैल की नाइ
बस चलते ही गए, चलते ही गए
ज़मीर बेचा और प्यार बिक गया
अच्छा वक़्त लाने के लिए
कमबख़्त वक़्त तोह आया नहीं
पर मौत आ गई सुलाने के लिए
अब अपना ही घर नहीं मिल रहा है मुझे
अपने ही गांव में
तन मेरे बहुत जल रहा है
पुराने बरगद की छाओं में
अब अक्ल आए भी तो क्या
तांश के पत्तो का खेल तो पूरा हो गया
अब माफ़ी मांगे भी तो क्या
ज़माने भर के लिए में बुरा हो गया
अब सोच रहा हूं कि कुदरत एक मौका और दे अगर
तो गलतियां सुधार लू
इस बार औरों के लिए जियू
और ज़माने भर को प्यार दू
पर यहां दूसरा मौका देते नहीं
कहते की बेऐतबारी है
अल्लाह को रो कर क्या कहूं
जब गलती ही हमारी है
गर वक़्त है तो जान लो विशाल
सब मिट्टी है और मेला है
पूरे यकीन से इबादत करो उस रब की
गर मजनू है तो लेला है
वोह है, वोह है, वोह है, वोह है
बाकी कुछ नहीं
यह उसकी महफ़िल का नशा है
शराब और साकी कुछ नहीं
इबादत ही सच है, बाकी कुछ नहीं
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं।