मुश्किल हालातों ने मजबूरियों को रहने की जगह क्या दी जिंदगी में,
की अब वोह जाने का नाम ही नहीं ले रही है।
हर बार कोई न कोई बहाना बता के,
कुछ देर ओर की मोहलत मांग कर ठहर जाती है।
इस दफ़ा तो कोई बहाना सुनने वाला नहीं हूं मैं,
हाथ पकड़ कर निकाल बाहर करने वाला हूं मैं।
पर मेरी ताक़त-ए-परवाज़ कुछ कम है इन दिनों,
बस इसी मजबूरी के चलते कुछ कह नहीं पाता हूं मैं।
मजबूरियों ने चारो तरफ से ऐसे घेरा है मुझे,
के बेबस और लाचार सा महसूस करता हूं खुद को।
ए मेरे मौला, अब तू ही इमदाद कर मेरी,
मुझे मेरी सब मजबूरियों से निजात दिला दे।
इंसान बना के भेजा था ना तूने मुझे मेरे मौला,
मेरे अंदर बैठा वो इंसान बस जगा दे।
जगा यकीन अपने रहम-ओ-करम का मेरा अंदर मौला,
मेरे अंदाज-ए-नज़र मैं असर बड़ा दे।
मजबूरियों को बदल दे कोशिशों में मेरी,
मुझे मेरी मंजिल-ए-आराम तक पहुंचा दे।।
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गुज़ारिश
जिंदगी सार्थक कर दे ए मौला,
मुझे सलीके से जीने का मौका दे।
नई तय कर मेरे जीवन की ऊंचाइयां,
जिंदगी में नई तमनाओ का झोंका दे।
बारीशे कर इल्म-ओ-हुनर की मुझ पर,
मुझे नई बुलंदियों पर पहुंचा दे।
मैं ऊपर उठू तेरे रहम-ओ-करम से मेरे मौला,
मेरे जीवन को जन्नत बना दे।
हटा मेरे सर से बोझ सभी फिकरों का,
मुझे सकून से जीना का सलीका दे।
और मिटा दे मेरे जेहन से, जो भी बुरा सीखा है मैंने,
मुझे प्यार के, इबादत के, दो लफ्ज़ सीखा दे।
मैं खोजू तुझ को और तुझी से ही मिल जायूँ,
यही मेरी जिंदगी की मंजिल तू बना दे।
इमदाद कर तू यही मेरे मौला,
मैं मिल सकूं तुझ से, मुझे इतना काबिल तू बना दे।
मुझे तुझसे(खुदसे) मिलने का मौका दे।।