मक़सद-ए-मगरूर

वोह मक़सद-ए-मगरूर है
अल्लाह से कितना दूर है

वोह नादान है, नापाक है
घरों में पलते सांप है
मुर्शद मुरीद की मौत पर
कहते की मिलती हूर है

वोह मक़सद-ए-मगरूर है
अल्लाह से कितना दूर है

इंसाफ कर, हिसाब कर
इंसाफ कर, मौला आज कर
यह कयामत का क्या दस्तूर है

वोह मक़सद-ए-मगरूर है
अल्लाह से कितना दूर है

मौला ज़िन्दगी, पर सकून नहीं
मौला मस्जिदें, पर तु नहीं
यह कैसी अंधेरी रात है
जो हर इंसान नशे में चूर है

वोह मक़सद-ए-मगरूर है
अल्लाह से कितना दूर है

होंगी कृष्ण संग गोपिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

राधे ब्रज मा बैठी बिलके
गए नहीं कृष्ण इस बार भी मिलके
काटे थे दिन मैंने गिन गिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

पूछूंगी कहां अब तक दिन बिताए
मिलने तुम इतने दिन से ना आएं
हुआ तुमसे मिलने कठिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

जाने कहां वोह रास रचाए
गोपियों का मन कृष्ण पे आए
कृष्ण तो है भी चंचल मन, कमसिन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

जब कोई गोपी कृष्ण को छूती
दिल करता उसे कर दुं विभुति
कृष्ण बस मेरे ही स्वामीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

काश मैं होती कृष्ण के संग
देख लेती सवारें के रंग
राधा तड़पे जैसे पानी बिन मीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

यह सब सोच रही थी राधा रानी
पीछे सुनी कान्हा को वाणी
मुड़ देखा, खड़े रसलीन

होंगी कृष्ण संग गोपिन

राधा की सुध बुध सी खो गई
कृष्ण को देख बस मस्त सी हो गई
कृष्ण कहें की राधा तेरे ही आधीन

संग नहीं थी कोई गोपीन।