की मेरे घर भी चिराग़ जले
सुनी इन राहों में सहारे को
बाहों में मेरे लाल पले
भगवान शायद पास ही बठे थे मेरे
की दिल की चाहत पूरी हुई
बेटा घर आया था मेरे
उसकी हर एक ख्वाहिश, मेरे लिए जरूरी हुई
सारा जीवन लगा कर
उस छोटे से पोधे को
स्नेह के सहारे
बड़ी शिदत से पाला
उसका हर एक लम्हा
और हर एक टूटा हुआ भी खिलौना संभाला
यूहीं बीते वर्ष
और यूहीं दिन-बा-दिन वोह बढ़ता गया
मेरी उम्मीदें जवान हो रही थी
और उन पर परवान चड़ता गया
बड़ी शान-ओ-शोकत से मनाई उसकी शादी
कोई कमी ना रहने दी
सिर से पांव तक सजाया उसकी दुल्हन को
ना छोड़ी कमी किसी गहने की
शादी के बाद से ही मुझसे
अब रूठा रूठा रहता है
मां तुमने किया ही क्या है
यह बड़ी ऊंची आवाज़ में कहता है
अब समझी की लोग
बेटा होने के बाद भी क्यों सुखी नहीं
जिस खुशहाली की उम्मीद थी मुझे
वोह क्यों मेरे दर पर रुकी नहीं
अब किससे वोह साल, वोह दिन, वोह लम्हें मांगू
जो मैंने सींचन में लगाए थे
किससे उन आंसूओं का हिसाब मांगू
जो उसे ठोकर तक लगने पर बहाए थे
कोई भी यहां अपना नहीं
यही सच समझी हुं मैं
उसकी बदसलूकी का गिला नहीं है मुझे
क्यूंकि उसकी वज़ह से ही सच समझी हूं मैं।
31.01.2013

