कुछ यादें

कुछ यादें, कुछ लम्हें
कुछ बातें अनकही

कुछ अपना छोड़ के
कुछ रस्ते मोड़ के

मैं अपने घर से निकाल तोह पड़ा
सोच कर कि सामने सुनहेरा भविष्य है खड़ा

यहां आकर देखी काली रात
पर याद आई घरवालों की समझाई बात

की कुछ भी हो ना घबराना
जो करने गए हो, उसे पूरा कर के ही आना।

ना देख पाए ज़िन्दगी

नज़र अंदाज़ कर के
बख़ूबी चल रही थी ज़िन्दगी
जिस दिन रूबरू हुए
उस दिन घबरा गए हम

इतना कुछ बीत रहा था
उसके साथ
की हालत उसकी देख के
शर्मा गए हम

कुछ देर भी यह नज़ारा
देख ना सके
मन की चुभन के चलते
नज़रे छुपा गए हम।