हम है आज़ाद परिंदे

हर गम से तु
मज़बूरी से
आज़ादी दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

मेरे पंखों को
खुलने की
जगह दे

इतनी की
सूरज को भी
हम छुपा दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

कुछ पाने कि
हर ख्वाहिश ही
फ़ना कर दे

तेरे इश्क़ की
चाहत से ही
मुझे भर दे

ओ मौला
मुझे आज़ाद
कर दे

मेरे कन कन को
आज़ादी से
ऐसे भर दे

की सांस-सांस मेरी बोले
हम है
आज़ाद परिंदे

हम है
आज़ाद परिंदे

जाम-ए-हकीक़त

खनकते जाम
सुर्खियों में नाम
ना खबर सुबह
ना खबर शाम
क्या यही है इनाम
क्या यही है इनाम
मेरी बेथक मेहनत का
क्या यही है अंजाम

मैं क्यों चला था
मैं किस लिए चला था
क्या कर दिखाना था ज़माने को
अरे छोड़ो यारों, मैं आम आदमी ही भला था

इस चमक ने मुझको अंधा कर के
अपनो से बहुत दुर किया
छीन के मेरे मासूम पन को
ज़ालिम और मगरूर किया

यहां दिखती है रोशनी, पर अंधेरा है
लोग कहने है सुरज मुझे
और मैं ही ढूंढू कहां सवेरा है

अब वापिस जाने की राहें ना दिखे मुझे
रिश्ते नाते लग रहे उलझे उलझे

सुर्खियों में नाम भी कहीं खो गए
खनकते जाम ना जाने कहां सो गए

अब लोगों को नाम भी मेरा याद नहीं
कहते है कि हां कोई फला था

अरे छोड़ो यारों, मैं आम आदमी ही भला था।