कुछ यादें, कुछ लम्हें
कुछ बातें अनकही
कुछ बातें अनकही
कुछ अपना छोड़ के
कुछ रस्ते मोड़ के
मैं अपने घर से निकाल तोह पड़ा
सोच कर कि सामने सुनहेरा भविष्य है खड़ा
यहां आकर देखी काली रात
पर याद आई घरवालों की समझाई बात
की कुछ भी हो ना घबराना
जो करने गए हो, उसे पूरा कर के ही आना।