मूर्ति पुज के राम मिले तो

मूर्ति पुज के राम मिले तो, मै पुजू पहाड़

राम तेरा तेरे भीतर छुपा है, उसको ले पहचान

तुझ पर कृपा करता है वोह, कितना दीन दयाल

दुख में जब सब छोड़ के जाते, वोह रहता तेरे पास

सुख दुख में वोह साथ है तेरे, रख उस पर ही आस

दुख मैं भी तू निडर रहना, ना सुख की करना आस

राम का रिश्ता तुझ से वैसा, जैसे पानी संग है प्यास

बाहर की आंखें बंद कर ले, भीतर आंखें खोल

भीतर समाए राम के, संग संग तू डोल

फिर तू समझ जाएगा प्यारे, कहां राम का वास

मूर्ति पुज के राम मिले तो, मै पुजू पहाड़ ।

मेरी मां

मेरी सजावत से क्या
मेरी सजावत भी तुम हो
मेरी इबादत भी तुम हो

तुम ही हो जन्नत के नज़ारे
तुम ही हो दिल जिसे पुकारे

तुम ही हो वोह न्यारी मूरत
तुम ही हो सबसे ख़ूबसूरत

करुणा, दया, प्यार और ममता तुम से झलकती है
तुम्हे याद करते हुए, पलक तक ना झपकती है

तुम उन ऋषियों की तपस्या हो, जो प्रभु को पाना चाहते है
तुम समंदर का वोह क्षितिज हो, जिसमें सूरज डूब जाना चाहते है

तुम वोह हो जिसमें मेरा मन, हर पल ही पल सुख पाता है
तुम हो मेरी मां, जिसे देखकर मेरा दिल मुस्कुराता है।