अंगीठी मन बना

मिट्टी बंटी, देश बना
तन बंटे, भेष बना

मन बंटे, कलह कलेश बना
धर्म के ठेकेदारों ने इस सब को जना

गोली का निशाना, हर एक जन बना
जहां फूलों की थी फुलवारी, वोह जगह अब रण बना

खून में लिपटा और लाल हर कण बना
नफ़रत सुलगी और अंगीठी मन बना।

तेरे आने को दाता

तेरे आने को दाता
हवा ने बात चलाई है
बरखा ने धरती को धोया है
फूलों ने पगडंडी बनाई है

मां लक्ष्मी ने बल बुद्धि विद्या दे के
मन मंदिर में ज्योति जगाई है
जिभा देहली भी रामा
तेरे ओहो गाद से सजाई है

हर दिए को कहा है दाता
हर दिए को बात बताई है
उनके बुझने से पहले आयोगे तुम
यह उनसे शर्त लगाई है

सारी दुनिया देखने आ रही
की यह रोशनी कहां जगमगाई है
आज मिलने की घड़ी आई है
सांसों में बजी शहनाई है

दाता पग धरो, कृपा करो
दाता पग धरो, कृपा करो
तेरे राज़ तिलक की रामा
शुभ घड़ी आज आई है

सांसों में बजी शहनाई है। – 2