बीता समय, अच्छा था या बुरा, कुछ याद नहीं । क्या वोह लम्हे बरकत के थे या हरज़े के, कुछ याद नहीं ।। याद है तो बस इतना, की जिंदगी थी और हम जिंदा थे । क्यों और कैसे, उतना सब तो अब याद नहीं ।। याद करके करना भी क्या है ओ शायर, समय तो बह कर गुज़र गया । आज खड़ा है सामने हाथ बढ़ाए, की चलो कुछ नई यादें बनाएं ।। अब कोशिश हो की ऐसे जिए, की लम्हा-दर-लम्हा याद रहे । सजाए कुछ ऐसा यादों के आशियाने को, की हमारे जाने के बाद भी वोह आबाद रहे ।।
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बाकी कुछ नहीं
जब तक जिए फिज़ाओं में
चंद घड़ियां भी बहुत लंबी लगती है
ग़म की छाओ में
दोनों ही वक़्त, झूठे और बेमतलबी है
पर जीवन भर समझ ना सके
कोल्हू के बैल की नाइ
बस चलते ही गए, चलते ही गए
ज़मीर बेचा और प्यार बिक गया
अच्छा वक़्त लाने के लिए
कमबख़्त वक़्त तोह आया नहीं
पर मौत आ गई सुलाने के लिए
अब अपना ही घर नहीं मिल रहा है मुझे
अपने ही गांव में
तन मेरे बहुत जल रहा है
पुराने बरगद की छाओं में
अब अक्ल आए भी तो क्या
तांश के पत्तो का खेल तो पूरा हो गया
अब माफ़ी मांगे भी तो क्या
ज़माने भर के लिए में बुरा हो गया
अब सोच रहा हूं कि कुदरत एक मौका और दे अगर
तो गलतियां सुधार लू
इस बार औरों के लिए जियू
और ज़माने भर को प्यार दू
पर यहां दूसरा मौका देते नहीं
कहते की बेऐतबारी है
अल्लाह को रो कर क्या कहूं
जब गलती ही हमारी है
गर वक़्त है तो जान लो विशाल
सब मिट्टी है और मेला है
पूरे यकीन से इबादत करो उस रब की
गर मजनू है तो लेला है
वोह है, वोह है, वोह है, वोह है
बाकी कुछ नहीं
यह उसकी महफ़िल का नशा है
शराब और साकी कुछ नहीं
इबादत ही सच है, बाकी कुछ नहीं
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं।