क्यों बेड़ियां मेरे पावों में है

क्यों बेड़ियां मेरे पावों में है
क्यों सिसकियां इन हवाओं में है

क्यों होंसला कमजोर है
क्यों पकड़ा एक ही छोर है

क्यों उड़ने से मैं डर रहा
क्यों ना कोशिश मैं कर रहा

क्या मन में चल रहा कुछ और है
क्या इसीलए इतना शोर है

क्या मन में मेरे चोर है
क्या इसने ही किया कमजोर है

कैसे लडू ख़ुद ही से मैं
जब मन ही मेरा चोर है|

जब रक्षक ही भक्षक बन जाए

जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तब कौन बचाएं

सदियों से हम किसी ना किसी को मुखिया बनाते रहे
अपनी समझ को इस्तेमाल करने में हिचकिचाते रहे

मुखिया की ही समझ श्रेष्ठ है, इसका क्या प्रमाण है
कभी ना कभी तो वोह भी गलती करेगा, आखिर वोह भी तो इंसान है

मुखिया अपनी ज़िमेदारी भूल चुका है, अब उसकी सरदारी हो गई
और हर मुखिया इससे ग्रस्त हो गया, इतनी भयंकर यह बीमारी हो गई

अब लोगों का पोषण नहीं, बस शोषण होता है
ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, दीलासो भरा उनका भाषण होता है

समाज को इस महामारी से कैसे मिलेगी निजात
मेरी समझ से तो अब लोगो को ज़िमेदारी लेनी होगी अपने हाथ।