मन ढूंढता है

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान
किसको है पता, है हर कोई ही अनजान

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

अब तो मिल जायों रे प्रीतम
ना करो हमें युं परेशान

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

कितने सुंदर सब रंग थे
जब तलक तुम संग थे
डाली डाली पौधा पौधा
सब पर चढ़ जाता था परवान

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

सामने आयो कहां छुपे हो
कुछ तो बताओ क्यूं रूठे हो
तेरी खामोशी ने झिनझोड़ दिया है हमें
बस निकलने को है हमारे प्राण

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

नैना तरस गए है हमारे
आंखों के आंसू छम छम पुकारे
जीने की कोई वज़ह नहीं थी
मेरी वज़ह बनी तेरी मुस्कान

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

यह तो बतादो कि क्या ग़लत किया हमने
ना करेंगे हम वोह अगले जन्म में
इतनी अरज़ है कि इक बार मिल जाना
मेरा मारना जो जाएगा आसान

मन ढूंढता है, हर घड़ी तेरे ही निशान

08.12.2012

क्या है ज़िन्दगी

बेमतलबी पन्नों पर, बेमतलबी शब्दों की कतारों का नाम ज़िन्दगी है

मैं को बचाने के लिए, खड़ी करी दीवारों का नाम ज़िन्दगी है

असल क्या है, यह तोह नहीं पता ऐ विशाल

पर लगता है, कि इकठ्ठे किए हुए विचारों का नाम ज़िन्दगी है।