शब्द वफादार नहीं

समेटे, स्वारे, सजाए
और भेज दिए थे यह शब्द

मुझे सजदा करके चले थे
की वहां परवाज़ दिखाएंगे
अरे तुम अपने कान खुले रखना
हम हंसी की गान सुनाएंगे

पर वक़्त चल गया था अपनी चाल
कम्बख़त शब्दों ने जाने क्या बताया था
रुंधा रुंधा था मां का गला
आंसूओं में खुद को भिगाया था

ऐ शायर, तेरे शब्द वफादार नहीं
तु शायर बनने का हकदार नहीं

क्यों भूल जाता है तु की
मां का दिल नाजुक होता है
बेटे की हर इक आह
मां के दिल पे चाबुक होता है

तु कैसा शायर है
जो मां के दिल को समझ ना सका
तु युंही शब्द लिखता है
तेरी कलम का रस नहीं पका

अब माफ़ी भी मांगेगा तो कैसे
शब्द अब और तेरा खज़ाना नहीं है
कुछ ना कर, बस जा के लगा जा मां के गले
तुझे, मुझे और कुछ समझाना नहीं है।

मेरी मां

मेरी सजावत से क्या
मेरी सजावत भी तुम हो
मेरी इबादत भी तुम हो

तुम ही हो जन्नत के नज़ारे
तुम ही हो दिल जिसे पुकारे

तुम ही हो वोह न्यारी मूरत
तुम ही हो सबसे ख़ूबसूरत

करुणा, दया, प्यार और ममता तुम से झलकती है
तुम्हे याद करते हुए, पलक तक ना झपकती है

तुम उन ऋषियों की तपस्या हो, जो प्रभु को पाना चाहते है
तुम समंदर का वोह क्षितिज हो, जिसमें सूरज डूब जाना चाहते है

तुम वोह हो जिसमें मेरा मन, हर पल ही पल सुख पाता है
तुम हो मेरी मां, जिसे देखकर मेरा दिल मुस्कुराता है।